भारत के गुजरात के पश्चिमी छोर पर है दुनिया का सबसे बडा बियाबान, नमक का एक विशाल ताल, कच्छ का रण जो २०००० वर्ग आकार का बंजर इलाका है. यह दुनिया का दुसरे नंबर का सबसे बडा नमक का ताल है. एक जमाने में ३००० साल से भी ज्यादा समय तक याह क्षेत्र १० से १२ मीटर समंदर के पाणी के नीचे रहा है. यह भी समंदर का हिस्सा था मगर हजारो वर्षो के दौरण ऐसे भौगोलिक बदलाव हुये की ये नमक का सबसे बडा ताल बन गया. कच्छ के रण में खदिर बेट है, जिसके उत्तर-पश्चिमी छोर पे हडप्पा सभ्यता की पांच सबसे बेहतरीन नगरोंमेसे एक बेहतरीन नगर धौलाविरा है.
 | खडीर बेट |
अनुमान लगाया गया है की जब कच्छ के रण में समंदर का पाणी रहा होगा तब खदीर बेट चारों तराफ से पाणी से घीरा एक द्वीप रहा होगा और धौलाविरा जो खदिर बेट पे बसा हुआ था वह सक्रीय बंदरगाह रहा होगा क्युंकी रण का यह क्षेत्र नौकावाहन केलिये सहज होणे के कारण खाडी देशों से विदेशी व्यापार करणे के लिये समुद्री मार्ग के रूप में उपयोगी रहा होगा. आज भी मान्सून में समुद्र जल के भाराव से खदीर बेट का संबंध भारत से टूट जाता है. यहां का पानी गर्मी में बाष्प बन के उड जाणे के बाद सिर्फ नमक बचता है.
हड़प्पा के अभी तक खोजे गए 1,000 से अधिक शहरों में यह छठा सबसे बड़ा शहर है, जहाँ मानव बस्तियों का वास 1,500 से अधिक वर्षों तक रहा है। धौलावीरा न केवल मानव जाति की इस आरंभिक सभ्यता के उत्थान और पतन के संपूर्ण प्रवास का साक्ष्य देता है, बल्कि नगर नियोजन, निर्माण तकनीक, जल प्रबंधन, सामाजिक शासन-प्रणाली और विकास, कला, उत्पादन, व्यापार एवं मान्यता को लेकर अपनी बहुमुखी उपलब्धियों को भी प्रदर्शित करता है। अत्यंत समृद्ध कलाकृतियों के साथ, धौलावीरा की अच्छी तरह से संरक्षित शहरी बस्ती, अपनी विशेषताओं के साथ एक क्षेत्रीय केंद्र की विशद तस्वीर प्रदर्शित करती है, जो समग्र रूप से हड़प्पा सभ्यता के मौजूदा ज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान देती है।
भारत स्वतंत्र होणे के बाद भारत ने हडप्पा कालीन नागरोंकी खोज शुरू हुई.
हजारो वर्षो से फैला यह बंजर बियाबान जहां कभी बसा था भारत के अनजाने इतिहास के महानतम शहरोंमेसे एका हडप्पा का धोलाविरा नाम का शहर.
धोलाविरा की खुदाई शुरू हुई सन १९९० में. काम बडी मेहनत का था, कई सालो कि खुदाई के बाद बेशकीमती चीजे मिलने लगी. लेकीन एक दिन जमीन से बाहर निकल रहा एका सफेद पथ्थर नजर आया फिर एक के बाद एक और निकले. प्रतिक नजर आने लगे जो शायद किसी प्राचीन भाषा या कोड के थे या शयाद किसी और दुनिया के. आज तक के हड़प्पा के खुदाई में ऐसी कोई चीज पहले कभी नाही मिली थी,
 | सफेद पत्थर से बना लेख |
क्या यह सिंधू घाटी सभ्यता के छिपे राज खोल सकता था? जीनाकी चाबी है एक ऐसी भाषा में जिसे अब तक कोई नही समझ पाया, ऐसे एक के बाद एक कुल १० प्रतिक खुदाई करते वक्त सामने आये जो उत्तरी गेट के कक्ष में एक लाकडी के फलक पे अपारदर्शी ग्लास यानी सभी सफेद जिप्सम से बने हुये थे. इनमेसे हर आकृती कि लंबाई ३७ सेमी. है और चौडाई २७ सेमी है. लागभाग १० आकृतीयोंसे बना यह अभिलेख हडप्पा संस्कृतीके उत्खन से प्राप्त सबसे बडा अभिलेख है. और वह शहर के मेन गेट के पास मिले थे, जिससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है की वह एक दिशादर्शक फलक रहा हो या फिर उस शहर का नाम उसपे अंकित किया गया होगा मगर उस पर क्या लिखा है यह आज तक कोई भी नाही पढ सका.  | आकृती के माप |
 | संपूर्ण अभिलेख |
हडप्पा के लेखो के साथ परेशानी यही है कि हमे आज तक उन्हे पढनेवाला नही मिल पाया है, अभी तक उन्हे समझा नाही जा सका है, इसलिये धोलाविरा के वह प्रतिक आज भी राज ही बने हुए हैं, आज के गुजरात के कच्छ जिले में बस धोलाविरा कभी सिंधू घाटी सभ्यता का हिस्सा और उसके सबसे बेहतरीन शहरोंमेसे एक था जो शोधकर्ता (archaeologist) मानते है कि करीब १२० एकर में फैला यह शहर ५००० साल पुराना था, इजिप्त के ग्रेट पिरामिड सेभी पुराना धोलाविरा करीब १५०० साल तक बसा रहा धोलाविरा के लोग बडे ही सभ्य लोग थे, उनके पास उस वक्त भी बडी उन्नत technology थी, आप खुद सोचीये ३६०० bce में ही उन्होने जमीन के नीचे खराब पाणी को ले जाने के लिये नालीयां बना ली थी उनके पास पकी हुई इटे थी और ऐसा शहर था जिसे एक योजना बना कर बसाया गया था. वो शहर एक ऐसे platform पर बसा था जीससे यह साबित होता है कि वो सेबीक प्लानिंग के बरे में जाणते थे उन्हे त्रिकोणमिती (trigonometry) की बोहोत अच्छी समझ थी. रेशो का अंदाजा था और वह ऐसी गणना (calculation) जाणते थे जो एक महानगर बसाने के लिये जरुरी था.
लेकीन इस प्राचीन शहर को बसाने वाले लोग कौन थे, उन्होने उस
जमाने में त्रिकोणमिती (trigonometry) का इस्तेमाल किया था जब
दुनिया इसके बरे में जाणती भी नही थी.
क्या हमारे पुर्वाजो ने अपना शहर बसाने के लिये मिट्टी के मोडेल्स
बनाये थे, हम यह कभी नहीं जान पायेंगे पर इस बात में कोई शक
नही की उन्हे स्थापत्यकला engineering, Geology और Hydrology
की जानकारी थी. धोलाविरा उस जमाने का ऐसा शहर था जहां पाणी
कि बडी अच्छी व्यवस्था थी.
 | शहर का नकाशा |
यह शहर दो नदीयों के बीच बस था उत्तर में मनसर तो दक्षिण में
मनहर नदी बहती थी. दोनों नदीयों को शहर भर में बनी एक दुसरे से
जुडे tanks से जोडा गया था.
आज इकीसवी सदी में दुनियाभर में पीने के पाणी की कमी हो राही
है, जिसके वजह से युद्ध हो सकते है, लेकीन उन्होने धोलाविरा में
पाणी पर नियंत्रण कर लिया था वो चानेल्स dikes और dams का
इस्तेमाल करते थे हम धोलाविरा से नसिहत लेकर आज ऊन
चीजोंका इस्तेमाल कर सकते है. ५००० साल पहले धोलाविरा अरब
सागर का एक व्यस्त बंदरगा था, धौलाविरा आज तक के खोजे गये
नागरोंमेसे सबसे अच्छे संरक्षित नगरोंमें गिना जाता है. इस नगरके
अध्ययन से हमे सही मायने में हडप्पा सभ्यता के उदय और पतन का
प्रमाणित इतिहास प्राप्त होता है.
उनका व्यापार चरम पर था और यहां के लोग निर्यात के लिये मनके
बनाते थे, धोलाविरा में बने मनके मेसोपोटेमिया में मिले है, यानी आज
के इराक़ में, धोलाविरा के बरे में यह पता ही नही लग पाया की
वहांके लोग अचानक गायब कैसे हो गये.
धोलाविरा उस जमाने का manhaton शहर था ऐसे बोल सकते हैं,
उस उन्नात सभ्यता ने कुदरत की शक्तीयोंको साथ लिया था लोग
दुनियाभर में व्यापार करते थे उनकी आबादी कई हजार थी और वह
अचानक गायब हो गई. वजह क्या थी ज्यादातर खोजकर्ता मानते है
कि, सबसे बडी वजह थी जलवायू बदलाव.
इसके बाद भारत के वह प्राचीन लोग अपने साथ वो सारे राज समेट
कर कहीं और चले गये, उनके लेखोंका क्या हुआ, उनके शहर
बनाणे की उनकी कला कहां गायब हुई इन सवलोंका जवाब धुंडणे
पर और सवाल ही खडे होते है, हम आज भी धोलाविरा के बारे में
जानकारी जुटाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकीन शायद उसके
ज्यादातर राज उनके ऊन Codes की तरह रास्यमय ही बने रहेंगे.
आज तक किसी को भी यह पता नही चाल सका की उनके साथ क्या हुआ था.
नगर के बरे में :
यह नगर उत्तर कि तरफ उंचाई पर था और दक्षिण कि तरफ ढलान
थी. हडाप्पा सभ्यता का याह एकमेव बहुविभाजित नगर था जिसमे
तीन मुख्य विभाजन थे दुर्ग, मध्य नगर, और निचाला नगर धौलाविरा
की बहुतांश संरचानाये विशेष अनुपात में बनी दिखाई पडती है. जैसे
कि उन्हे वास्तुशास्त्र का संपूर्ण ज्ञान था, इन नगरोंके इर्दगीर्द भव्य
जलाशायोंकी शृंखला दिखाई पडती है जो आपस में एकदुसरे के साथ
सलग्न थी संपूर्ण नगर चारों ओर से विशाल चार दिवारोंसे संरक्षित था.
नगर कि मुख्य सडक ९ मीटर तक चौडी थी गली में घरोंके बीच १.५
मीटर का फासला था और अंदर की सडकोंकी चौडाई ५ मीटर तक थी,
 | शहर योजना
 | दो घरोंके बीच में १.५ मीटर का फसला
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 | आंतरिक रस्ते |
 | मुख्य सडक |
धौलाविरा नगर के बनी हुई इमारतोंकी इटे धूप में सुखाई हुई और
घीस कर चिकाने किये गये पत्थर और लाकडी से बनाई गई थी.
इनके इटो को नापणे से पता चालता है कि याह इटे उंचाई चौडाई
और लांबी के संदर्भ में १ x २ x ४ का अनुपात प्रदर्शित करती है इटो
का यही अनुपात हडप्पा सभ्यता के बहुतांश नगरोंमे पाया गया है.
 | इटो का अनुपात |
धुलाविरा में दुर्ग के उत्तर में एक विस्तृत मैदान पाया गया है जो ४७
मीटर चौडा और २८३ मीटर लंबा है, शायद इसका उपयोग
सामुदाईक समारोह करणे के लिये किया जाता होगा.
 | मैदान |
धौलाविरा की जलप्रबंधन प्रणाली अद्भूद थी जैसे ही हम नगर की
तरफ कदम बढाते है हमारे नजरोंके सामने भव्य जलकुंड दिखाई
देते है.
इन्हे देख के हमे मेहसूस होता है की धौलाविरा अतिथ में एक जीवित
सतेज नगर रहा होगा लेकीन मन में प्रश्न भी उठता है की इतने भव्य
जलाशय क्यू निर्माण किये गये होगे. शायद धौलाविरा में भूगर्भ से
पाणी नहीं मिलता होगा. आज भी कच्छ में पाणी के बारे में स्थिती
सही नही हैं हमेशा अकाल सदृश्य स्थिती बनी राहती है. लेकीन
अतिथ में धौलाविरा की सभ्यताने यहां पर १५०० सालों तक यहां पर
वास्तव्य किया था और इन्ही भव्य जल कुंडो से अपनी पाणी कि
समस्या को सुलझा लिया होगा.
 | जलाशय प्रणाली |
उन्होने चट्टाणोको काटकर एक विशाल जलाशय की प्रणाली को
निर्माण किया था, नगर के इर्द गिर्द १६ भव्य तालाबोंका निर्माण हमें
दिखाई पडता है जिसमे लागभाग २.५ लाख घनमीटर पाणी को
भांडारीत किया जा सकता है. मान्सून की वर्षा से नहर नदी में पाणी
आ जाता और वह पाणी नहर के रस्ते जालाकुन्डोमे जाता और एकेक
कर के सभी जालाशय भर जाते एक कुंड से दुसरे कुंड में जाते वक्त
यह पाणी प्राकृतिक रूप से शुद्ध होकर यह पाणी दुर्ग के अंदर कुओ
में जमा हो जाता फिर वह पाणी पिणे के लिये और इस्तेमाल करणे
केलीये अलग अलग कुन्डोमे जमा हो जात धौलाविराके लोगोनें
प्राकृतिक ढलानोका इस्तेमाल करके नगर में सभी जगाहो पे पाणी
पोहोचानेकी कला सिख ली थी.
 | कुंडो के नीचे से पाणी ले जाने के लिये बनाई गई नहर
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 | जलकुंड
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 | जलकुंड |
रोमन वासियोन्से भो बोहोत पहले हडप्पा सभ्यता के लोगोनें इस
अद्भुत तकनीक की खोज कर ली थी.
बाड के समय अतिरिक्त पाणी नगर से बाहर निकालाने का भी प्रबंध
किया गया था. धौलाविरा के जलाशय काफी विशाल थे जीनमे से कूच
७४ x २९ x १० मीटर के थे इनकी तुलना मोहोन्जोदारो के प्रसिद्ध
स्नानगृह से करे तो यह उससे तीन गुण बडे दिखाई पडते है. इतने
विपुल मात्रा में पाणी उपलब्ध होणे की वजह से धौलाविरा वासी
सालभर उगाने वाली फसले भी लेते होंगे और जिसका करोभार
समुद्र मार्ग से लागभाग ३५०० किमी. दूर मिसोपोटामिया तक करते
होंगे शायद इसी व्यापारी साबंधोसे धौलाविरा में विपुल मात्रा में पाये
गये मानके मेसोपोटामिया में भी पाये गये है, धोलाविरा के उत्खनन से
हमे मिट्टी के बर्तन, मुर्तीया. मानके, जनावारोकी आकृतिया, सोने,
चांदी और सिपो के आभूषण और मोहरो पे छपे बैल गेन्डो और अन्य
जानवरो के चिन्ह दिखाई पडते है. यहां से तांबा और कास्य धातू से
बनी वस्तुये और कामकाज में इस्तेमाल होणे वाले हथीयार भी प्राप्त
हुये है. खोजकर्तओंका अनुमान है इसपुर्व १८०० आते आते धौलाविरा
अपने अंत के करीब पोहोंच चुका था, इसके अंत के बारे में अनेक
कयास लगाये जाते है जैसे कि किसी शक्तिशाली भूकंपणे इस क्षेत्र
को समुद्र सतः से उपर उठा लीया होगा या फिर जलवायू में अचानक
आये बदलाव से यहां सालों तक मान्सून कि वर्षा बंद हुई होगी. या
नदीयोके प्रवाह में अचानक आये बदलाव ने धौलाविरा में भयंकर
सुख और अकाल पडा होगा धौलाविरा और संपूर्ण हडप्पा सभ्यता का
पतन कैसे हुआ इस बात को पक्के तौर पर कह पाना आभी तो
नामुंन्कीन है लेकीन समय के हिसाब से काफी उन्नत चल रही इस
सभ्यताकी नगर बसाने की तकनिक लिखाण की कला और लिपी
अचनक कहा लुप्त हो गई यह समझाना बोहोत जरुरी है क्युंकी इस
सभ्यता के बाद के समय काल में इनके जैसे उच्चकोटी के
नगरनियोजन और लेखन कला की तकनीक के प्रमाण कहींभी पाई
नही गई है. तो क्या इन सभी राजोंस पडदा कभी हाट पायेगा या फिर
हडप्पा सभ्यता के सभी रहस्य हमेशा हमेशा के लिये दफ्नही
रहेंगे.....
 | जलाशय |
पायी गायी चीजे :
यहाँ पाए गए कलाकृतियों में टेराकोटा मिट्टी के बर्तन, मोती, सोने
और तांबे के गहने, मुहरें, मछलीकृत हुक, जानवरों की मूर्तियाँ,
उपकरण, कलश एवं कुछ महत्त्वपूर्ण बर्तन शामिल हैं।
तांबे के स्मेल्टर या भट्टी के अवशेषों से संकेत मिलता है कि धौलावीरा
में रहने वाले हड़प्पावासी धातु विज्ञान जानते थे।
ऐसा माना जाता है कि धौलावीरा के व्यापारी वर्तमान राजस्थान,
ओमान तथा संयुक्त अरब अमीरात से तांबा अयस्क प्राप्त करते थे
और निर्मित उत्पादों का निर्यात करते थे।
धौलावीरा स्थल की विशिष्ट विशेषताएँ:
जलाशयों की व्यापक शृंखला।
बाहरी किलेबंदी।
दो बहुउद्देश्यीय मैदान, जिनमें से एक उत्सव के लिये और दूसरा
बाज़ार के रूप में उपयोग किया जाता था।
अद्वितीय डिज़ाइन वाले नौ द्वार।
अंत्येष्टि वास्तुकला में ट्यूमुलस की विशेषता है - बौद्ध स्तूप जैसी
अर्द्धगोलाकार संरचनाएँ।
बहुस्तरीय रक्षात्मक तंत्र, निर्माण और विशेष रूप से दफनाए जाने
वाली संरचनाओं में पत्थर का व्यापक उपयोग।
धौलावीरा शहर के समृद्धि-काल में वहाँ की जो व्यवस्था थी, वह
संभवतः विभिन्न व्यावसायिक गतिविधियों और स्तरीकृत समाज के
आधार पर सुनियोजित शहर तथा पूर्णतः नियोजित और पृथक्
रिहायशी क्षेत्रों का एक सर्वोत्तम उदाहरण है। जल का व्यवस्थित
उपयोग करने वाली प्रणालियाँ और जल निकासी व्यवस्था की
तकनीकी उन्नति अपने आप में अद्वितीय थी। इनके साथ-साथ
वास्तुशिल्पीय और तकनीकी रूप से विकसित ये विशिष्टताएँ उनकी
स्थानीय सामग्रियों की बनावट, उसके निष्पादन और उनके प्रभावी
उपयोग में दिखाई देती हैं। हड़प्पा के पूर्ववर्ती नगर जो नदियों या
जल के स्थायी स्रोतों के निकट बसे थे, उनके विपरीत धौलावीरा का
खादिर द्वीप में स्थित होना, अलग-अलग खनिज पदार्थों और कच्चे
माल के स्रोतों (ताँबा, सीप, अकीक-इंद्रगोप, शैलखड़ी, सीसा,
पट्टीदार चूने का पत्थर आदि) का व्यवस्थित उपयोग करने तथा मगन
(वर्तमान ओमान प्रायद्वीप) और मेसोपोटामिया क्षेत्रों में आंतरिक और
बाहरी व्यापार आसान बनाने के लिए अनुकूल था।
धौलावीरा का पतन:
इसका पतन मेसोपोटामिया के पतन के साथ ही हुआ, जो
अर्थव्यवस्थाओं के एकीकरण का संकेत देता है।
हड़प्पाई, जो समुद्री लोग थे, उन्होने मेसोपोटामिया के पतन के बाद
एक बड़ा बाज़ार खो दिया जो इनके स्थानीय खनन, विनिर्माण,
विपणन और निर्यात व्यवसायों को प्रभावित करते थे ।
जलवायु परिवर्तन और सरस्वती जैसी नदियों के सूखने के कारण
धौलावीरा को गंभीर शुष्कता का परिणाम देखना पड़ा।
सूखे जैसी स्थिति के कारण लोग गंगा घाटी की ओर या दक्षिण
गुजरात की ओर तथा महाराष्ट्र से आगे की ओर पलायन करने लगे।
इसके अलावा कच्छ का महान रण, जो खडीर द्वीप के चारों ओर
स्थित है और जिस पर धोलावीरा स्थित है, यहाँ पहले नौगम्य हुआ
करता था, लेकिन समुद्र का जल धीरे-धीरे पीछे हट गया और रण क्षेत्र
एक कीचड़ क्षेत्र बन गया।
यह स्थल अपनी अद्भुत नगर योजना, दुर्भेद्य प्राचीर तथा अतिविशिष्ट
जलप्रबंधन व्यवस्था के कारण सिन्धु सभ्यता का एक अनूठा नगर था।
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